
Last Updated on 26/11/2022 by Sarvan Kumar
स्वतंत्र लेखक प्रसन्न चौधरी और पत्रकार श्रीकांत की किताब ‘बिहार सामाजिक परिवर्तन के कुछ आयाम’ में इस घटना का विस्तार से जिक्र है। साल था 1925। बिहार में निचली समझी जाने वाली जातियां एक जगह जुटती थीं और सभी एक साथ जनेऊ धारण करते थे। इसे बिहार में ऊंची समझी जाने वाली जातियों ने खुद के लिए एक चुनौती समझा। कई जगह पर छिटपुट घटनाएं हुईं, लेकिन सबसे बड़ी घटना 26 मई 1925 को लखीसराय के लाखोचक गांव में घटी। इस दिन जनेऊ धारण करने के लिए आसपास के कई गांवों से यादव बड़ी संख्या में यहां जुटे हुए थे। प्रसिद्ध नारायण सिंह इलाके के बड़े जमींदार थे और जाति से भूमिहार थे। वो इसके खिलाफ थे। उनके नेतृत्व में करीब हजारों भूमिहारों ने यादवों पर हमला कर दिया। इस किताब में उस दिन की घटना कुछ यूं दर्ज है, ‘उत्तर-पश्चिम दिशा से करीब 3000 बाभनों की भीड़ गोहारा बांधे बस्ती की तरफ बढ़ रही थी। हाथी पर अपने कुछ लोगों के साथ बैठे विश्वेश्वर सिंह भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। आजू-बाजू में घुड़सवार थे, जिसमें एक खुद जमींदार प्रसिद्ध नारायण सिंह थे। भीड़ लाठी, फरसा, गंडासा, तलवार और भाले से लैस थी।’ इस दिन पुलिस ने 118 राउंड फायरिंग की। पुलिस के सब इंस्पेक्टर और एसपी बुरी तरह घायल हुए। इस घटना में 8 से लेकर 80 लोगों के मारे जाने की बात कही जाती है। रणवीर सेना भूमिहारों द्वारा बनाई गई एक जातीय सेना थी. रणवीर सेना ने एक समय में कई हत्याओं और नरसंहार की घटनाओं को अंजाम दिया था. मुख्य रूप से दलित और भूमिहीन इस जातीय सेना के निशाने पर थे. रणवीर सेना द्वारा की गई हिंसक गतिविधियों में भूमिहीन और दलितों के अलावा अन्य जातियों के लोग भी मारे गए थे. तो क्या यादव जाति के लोग भी कभी रणवीर सेना की हिंसा के शिकार हुए थे? आइए हम यादव जाति के संबंध में रणवीर सेना की गतिविधियों का विश्लेषण करें; रणवीर सेना vs यादव
रणवीर सेना vs यादव
कहीं सामाजिक न्याय के नाम पर तो कहीं जातीय वर्चस्व के नाम पर, भारत रक्तरंजित जातिगत संघर्ष का गवाह बनता रहा है. जब समान सामाजिक स्थिति की जातियों के बीच संघर्ष होता है, तो मुद्दा अक्सर जाति वर्चस्व स्थापित करने से संबंधित होता है. लेकिन जब जातीय संघर्ष में विभिन्न सामाजिक स्थिति की जातियाँ आपस में टकराती हैं, तो स्थिति और भी जटिल हो जाती है. इस स्थिति में कई अन्य कारक महत्वपूर्ण हो जाते हैं लेकिन उनमें से सबसे महत्वपूर्ण है- सामाजिक न्याय की मांग. कई बार यह देखा गया है कि अंतर्जातीय संघर्ष राजनीति से प्रेरित होते हैं. भूमिहार और यादव बिहार में पाई जाने वाली महत्वपूर्ण जातियां है. भूमिहार सामान्य वर्ग की जाति है तो यादव ओबीसी में आते हैं. भूमिहार यादवों की तुलना में संख्या बल में कम है, लेकिन जमीदार जाति होने के कारण इन्हें साधन संपन्न और शक्तिशाली जाति माना जाता है. वहीं प्रबल जातिगत एकता, संख्या बल और राजनीतिक पहुंच के कारण यादव भी काफी प्रभावशाली हैं. 1925 में लखीसराय जिले का लाखोचक गांव में यादवों-भूमिहारों के बीच गोलियां चलीं थीं. इसमें दर्जनों मौतें हुई थी. इस घटना ने भूमिहार और यादव जैसी दो प्रमुख जातियों के बीच दूरी पैदा कर दी, जिसका प्रभाव आज तक बना हुआ है.1990 के दशक में बिहार में नक्सलवादी आंदोलन और माओवाद तेजी से पनपने लगा था. दोनों ही आंदोलन के समर्थक भूखमरी, गरीबी और बेरोजगारी से आजादी की मांग करते थे और इसके लिए उन्होंने हिंसा का रास्ता अख्तियार कर लिया था. नक्सलियों ने जमींदारों के हजारों एकड़ जमीन पर लाल झंडा फहरा दिया था. नरसंहारों का दौर शुरू हो गया था जिसमें भूमिहार समेत ऊंची जाति के कई लोग मारे गए. सवर्ण बिहार छोड़कर जाने लगे थे. बाद में धीरे-धीरे सवर्ण भी एकजुट होने लगे और एकजुट होकर प्रतिकार करने के लिए माहौल तैयार किया. 1994 में मध्य बिहार के भोजपुर जिले के बेलऊर में भूमिहारों ने ब्रह्मेश्वर मुखिया के नेतृत्व में एक सेना बनाई जिसका नाम रखा- रणवीर सेना. रणवीर सेना ने ऐलान कर दिया अगर माले या एमसीसी ने एक मारे तो वह उनके 10 लोगों को मारेंगे. रणवीर सेना ने कई हिंसक गतिविधियों को अंजाम दिया जिसमें अनुसूचित जाति के सैकड़ों लोग मारे गए. रणवीर सेना के हमले में कई जातियों के लोग मारे गए जैसे कि मुसहर, चमार, मल्लाह और कुशवाहा आदि. जून 2000 में, बिहार के औरंगाबाद जिले के मियापुर के यादव ग्रामीणों पर स्वचालित हथियारों से किए गए हमले के पीछे रणवीर सेना का हाथ होने का आरोप लगाया गया था. इस हमले में 22 लोगों की तुरंत मौत हो गई और बाकी ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया. पीड़ितों में छह नाबालिग शामिल थे. 18 घायल हुए जिनमें 10 की हालत गंभीर बताई गई थी. यह अनुमान लगाया गया था कि रणवीर सेना ने उच्च जाति के 11 ग्रामीणों की हत्या करने के बाद बदला लेने के लिए इस हिंसक घटना को अंजाम दिया था. आरोप यह भी लगे कि लालू यादव की सरकार को कम्युनिस्टों का समर्थन प्राप्त था, इसलिए एमसीसी पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी. कोबरापोस्ट के एक स्टिंग ऑपरेशन में रणवीर सेना के लोगों ने स्वीकार किया था कि रणवीर सेना को पूर्व पीएम चंद्रशेखर और भाजपा के यशवंत सिन्हा, मुरली मनोहर जोशी, सीपी ठाकुर और सुशील सिंह मोदी ने रणवीर सेना की मदद की थी.
References:
•Bihar Ki Chunavi Rajniti: Jati-Varg ka Samikaran (1990-2015)
By Sanjay Kumar · 2019
•Harding, Luke (18 June 2000). “Villagers massacred in bloody caste feud”. The Guardian. Retrieved 15 October 2020.
•https://www.bhaskar.com/db-original/news/where-war-took-place-95-years-ago-between-yadavs-and-bhumihars-118-rounds-of-bullets-were-fired-and-many-people-died-127853428.html
•https://www.bhaskar.com/article/BIH-history-of-ranveer-sena-3349663.html
•https://www.aajtak.in/elections/bihar-assembly-elections/story/mcc-ranvir-sena-battle-jehanabad-bihar-assembly-election-2020-1149169-2020-10-21
•https://www.thehindu.com/news/national/cobrapost-film-on-bihar-dalit-massacres-exposes-bjp-links/article7551350.ece
•https://thewire.in/rights/confessions-from-bihars-killing-fields-set-to-singe-bjp-and-nitish-too

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