
Last Updated on 25/10/2022 by Sarvan Kumar
भारतीय सेना में जाति, समुदाय और क्षेत्र के नाम पर कई रेजिमेंट और सैन्य इकाइयाँ हैं जैसे कि जाट, सिख, राजपूत, डोगरा, महार, जेएके राइफल्स , गोरखा, सिख लाइट इन्फैंट्री आदि. दलितों के तीन रेजीमेंटों- महार, चमार और मज़हबी-रामदसिया- ने द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था. इसमें से महार रेजिमेंट सेना का हिस्सा बनी रही. मजाहबी और रामदसिया रेजिमेंट का नाम बदलकर सिख लाइट इन्फैंट्री कर दिया गया. लेकिन चमार रेजिमेंट को भंग कर दिया गया. आइए जानते हैं कि चमार रेजिमेंट को क्यों भंग किया गया था?
चमार रेजिमेंट को क्यों भंग किया?
मुख्य विषय को समझने के लिए हमें चमार रेजिमेंट के गठन, इसके योगदान तथा उस समय के घटनाक्रम को समझना होगा. चमार रेजिमेंट की स्थापना 1 मार्च 1943 को अंग्रेजों द्वारा मेरठ कैंट में की गई थी. रेजिमेंट का मुख्यालय मध्य प्रदेश के जबलपुर में था और इसने 1946 तक ब्रिटिश सेना की सेवा की. इससे पहले सेना में केवल मार्शल जातियों को ही शामिल किया जाता था जैसे कि राजपूत, जाट, अहीर आदि. इस रेजिमेंट का गठन एक नई नीति के तहत किया गया था और इसमें उन समुदायों को शामिल किया गया था जिन्हें परंपरागत रूप से सेना में भर्ती नहीं किया जाता था. इस रेजिमेंट को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पूर्वी मोर्चे पर भेजा गया था और इसने कई प्रशंसा अर्जित की थी. चमार रेजीमेंट की पहली बटालियन ने रंगून, इंफाल और कोहिमा की लड़ाई में 42 जवानों की जान कुर्बान कर दी थी. बटालियन के सात सैनिकों को युद्ध सम्मान से सम्मानित किया गया, जबकि पूरी बटालियन को कोहिमा के युद्ध सम्मान से सम्मानित किया गया. यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि चमार योद्धाओं के शौर्य, साहस, त्याग और बलिदान को भुला दिया गया. 1946 में ब्रिटिश सरकार ने चमार रेजिमेंट को भंग कर दिया था. उपर्युक्त तथ्यों से क्या यह स्पष्ट है कि खराब प्रदर्शन के लिए चमार रेजिमेंट को भंग नहीं किया गया था. अंग्रेजों ने चमार रेजीमेंट को कैप्टन मोहनलाल कुरील के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज से मुकाबला करने के लिए सिंगापुर भेजा. कैप्टन कुरील ने देखा कि अंग्रेज चमार रेजीमेंट के सैनिकों के हाथों अपने ही देशवासियों को मरवा रहे हैं तो उन्होंने आईएनए में शामिल कर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करने का निर्णय लिया. चमार रेजिमेंट को अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर इस तर्क के साथ भंग कर दिया गया था कि इस रेजिमेंट के जवानों ने सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना में शामिल होने के लिए ब्रिटिश सेना को छोड़ दिया था. बाद में, कुछ जवानों ने रेजिमेंट को भंग करने के फैसले के खिलाफ विद्रोह कर दिया, यहां तक कि उनमें से 46 को विद्रोह में भाग लेने के लिए गिरफ्तार किया गया था.
चमार रेजिमेंट भंग करने का दूसरा कारण
आइए अब एक दूसरे संभावित कारण को समझते हैं. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों की कमी के कारण अंग्रेजों द्वारा महार रेजिमेंट का गठन किया गया था. लेकिन युद्ध समाप्त हो जाने के बाद इसे भंग कर दिया गया था. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक बार फिर महार रेजिमेंट का गठन किया गया था लेकिन इस बार इसे भंग नहीं किया गया. विशेषज्ञों का मानना है कि महार रेजीमेंट को भंग न करने के पीछे मुख्य कारण बीआर अंबेडकर थे. अम्बेडकर वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम विभाग के प्रभारी सदस्य थे, जो महार जाति से आते थे. चमार जाति में नेतृत्व का अभाव था. अंग्रेजी हकूमत चमार रेजीमेंट को बनाए रखने का किसी प्रकार का दबाव नहीं था और इसीलिए चमार रेजीमेंट को आसानी से भंग कर दिया गया.
References:
•Emancipation of Dalits and Freedom Struggle
By Himansu Charan Sadangi · 2008
•Chamar Regiment Aur Uske Bahadur Sainiko ke Vidroh Ki Kahani Unhi Ki Jubani
By Satnam Singh
•https://theprint.in/opinion/brave-ahirs-honourable-chamars-army-regiments-with-more-than-just-caste-on-their-side/221528/?amp

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