Last Updated on 23/11/2022 by Sarvan Kumar
अंग्रेजों ने लड़ाकू जातियों या योद्धा जातियों (Martial Races) की तत्कालीन अवधारणा के आधार पर ब्रिटिश भारतीय सेना में कई रेजिमेंटों का गठन किया था. इनमें से कई जाति-आधारित रेजिमेंटों को भंग कर दिया गया, जबकि कुछ जाति-आधारित रेजिमेंट अभी भी अस्तित्व में हैं. आइए इसी क्रम में जानते हैं भूमिहार रेजिमेंट के बारे में.
भूमिहार रेजिमेंट
भारतीय सेना में कई रेजिमेंट हैं जो क्षेत्रवाद, जातीयता, आस्था, जाति या भाषाई विभाजन का आभास देतै हैं. उदाहरण के लिए पंजाब रेजिमेंट, मद्रास रेजिमेंट, बिहार रेजिमेंट, मराठा लाइट इन्फैंट्री, गोरखा राइफल्स, राजपुताना राइफल्स, सिख लाइट इन्फैंट्री, डोगरा रेजिमेंट, राजपूत रेजिमेंट, जाट रेजिमेंट, गढ़वाल राइफल्स, कुमाऊं रेजिमेंट आदि.1857 के सिपाही विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय सेना में जाति और क्षेत्र के आधार पर भर्ती की गई ताकि इसे मार्शल और गैर-लड़ाकू जातियों में विभाजित किया जा सके. जानकारों का मानना है कि नस्ल और जाति के आधार पर सेना में भर्ती औपनिवेशिक भारतीय समाज को विभाजित करने और भविष्य में विद्रोहों को रोकने के लिए की गई थी. आजादी के बाद जाति आधारित रेजीमेंट बनाने का विचार खत्म कर दिया गया. हालाँकि, प्रेरक पहलुओं, परंपरा और इतिहास के कारण रेजिमेंट अपने मूल नामों और उपाधियों के साथ बने रहे. भूमिहार खुद को ब्राह्मण समुदाय का विस्तार मानते हैं. ब्राह्मण भूमिहार पूर्वोत्तर भारत की एक ज़मींदार जाति है. जाट, राजपूत और डोगरा समुदाय की तरह ब्राह्मणों का भी एक मार्शल इतिहास रहा है. उदाहरण के लिए, 1903 में, पहली (1st) और तीसरी (3rd) (गौर) ब्राह्मण इन्फैंट्री के रूप में एक जाति-आधारित रेजिमेंट का गठन किया गया था, जिसे प्रथम विश्व युद्ध के बाद भंग कर दिया गया था. प्रथम ब्राह्मण (The 1st Brahmans) ब्रिटिश भारतीय सेना की एक पैदल सेना रेजिमेंट थी. इसे 1776 में अवध के नवाब वज़ीर की सेना में सेवा के लिए कैप्टन टी नायलर द्वारा अवध में गठन किया गया था, और इसे नवाब वज़ीर की रेजिमेंट के रूप में जाना जाता था. 1777 में इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को स्थानांतरित कर दिया गया था. 1922 में, इसे चौथी बटालियन प्रथम पंजाब रेजिमेंट के रूप में नामित किया गया था. 1931 में रेजिमेंट को भंग कर दिया गया था. भूमिहारों की बात करें तो ये पूर्वांचल और बिहार में एक मार्शल जाति के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं. अपनी वीरता और निडरता के कारण इस समुदाय के लोग सिंह की उपाधि धारण करते हैं. आज भी इस समुदाय के लोगों की भारतीय सेना में महत्वपूर्ण उपस्थिति है. हालांकि भूमिहार रेजीमेंट के नाम से सेना में कोई रेजिमेंट नहीं है. इस समुदाय के लोग लंबे समय से भूमिहार रेजिमेंट के गठन की मांग कर रहे हैं.
References:
•Cawnpore
By George Otto Trevelyan · 1865
•BRAHMINS WHO REFUSED TO BEG
•https://theprint.in/politics/from-bochaha-bypoll-to-parshuram-jayanti-bjp-has-a-big-bhumihar-problem-in-bihar/950649
•https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/history-of-caste-based-regiment-in-the-indian-army-1592216143-1
•https://www.firstpost.com/india/demand-for-new-caste-faith-or-ethnicity-based-regiments-for-indian-army-not-in-consonance-with-policy-or-national-interest-6494681.html