
Last Updated on 25/09/2022 by Sarvan Kumar
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत आज भी जातिगत भेदभाव और छुआछूत जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. जातिवादी मानसिकता भारत के विकास में सबसे बड़ी रुकावट है. जातिवाद और छुआछूत सभ्य समाज के माथे पर एक कलंक है. जातिवाद के कारण इंसान के प्रति ना केवल असंवेदनशील बन जाता है, बल्कि दुश्मन की तरह व्यवहार करने लगता है. इसके कारण भारत, विशेष रुप से हिंदू समुदाय, को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है. दुनिया में भारत को ज्ञान और अध्यात्म की भूमि के रूप में जाना जाता है. भारत ने अपने आध्यात्मिक प्रकाश से पूरे दुनिया को प्रकाशित किया है. तो क्या दुनिया को प्रकाशित करने वाला भारत खुद जातिवाद और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों के अंधेरे में डूबा हुआ है? या इसके पीछे कुछ और भी कहानी हो सकती है? आइए निम्नलिखित विश्लेषण से जानते हैं हिंदू धर्म में छुआछूत और जातिगत भेदभाव का असली सच-
भारत में जातिगत भेदभाव और छुआछूत
हजारों साल पुराने इतिहास के अध्ययन से साफ पता चलता है कि वैदिक काल और प्राचीन भारत में कभी छुआछूत जैसी समस्या नहीं रही, ना हीं जातियां भेदभाव का कारण होती थीं. उदाहरण के तौर पर,
शांतनु ने की थी मछुवारे की पुत्री से शादी

•प्राचीन संस्कृत महाकाव्य महाभारत में शांतनु नामक एक महाप्रतापी राजा का वर्णन मिलता है. महाराज शांतनु हस्तिनापुर के क्षत्रिय सम्राट थे. उन्होंने एक निषाद कन्या (मछुवारे की पुत्री) सत्यवती से विवाह किया था. यह उनकी दूसरी शादी थी. इस विवाह के लिए सत्यवती के पिता ने यह शर्त रखी थी कि सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न पुत्र हीं महाराज शांतनु का उत्तराधिकारी होगा. अपने पिता शान्तनु का सत्यवती से विवाह करवाने के लिए देवव्रत ने राजगद्दी पर न बैठने और आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की भीष्म प्रतिज्ञा की और बाद में भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए. निषाद कन्या सत्यवती और महाराज शांतनु के दो पुत्र हुए- चित्रांगद और विचित्रवीर्य. कालांतर में दोनों ने क्षत्रिय राजा के रूप में हस्तिनापुर पर शासन किया.
वेदव्यास थे निषाद कन्या सत्यवती के पुत्र

•पवित्र हिन्दू धर्मग्रंथ महाभारत के रचयिता वेदव्यास भी निषाद कन्या सत्यवती के पुत्र थे, यानी कि मछुआरे थे. बाद में वह ऋषि बन गए और महाभारत जैसे पवित्र ग्रंथ की रचना की. वह गुरुकुल भी चलाते थे.
दासी के गर्भ से जन्मे विदुर

•दासी के गर्भ से जन्मे विदुर हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री, कौरवो और पांडवो के चाचाश्री और धृतराष्ट्र एवं पाण्डु के भाई थे. शास्त्रों, वेदों और राजनीतिक व्यवस्था के ज्ञानी विदुर ने “विदुर नीति” नाम के प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी.
भीमसेन ने की थी राक्षस प्रजाति के लड़की से शादी

•भीमसेन ने हिडिंबा से विवाह किया था जोकि राक्षस प्रजाति की थी.
भगवान श्री कृष्ण का संबंध दूध का व्यवसाय करने वाले यादव समुदाय से
•दुनिया को गीता का ज्ञान देने वाले भगवान श्री कृष्ण का संबंध दूध का व्यवसाय करने वाले यादव समुदाय से हैं. कहते हैं कि श्रीकृष्ण गोपालक थे और बलराम कृषक. बलराम हमेशा अपने पास हल रखते थे इसीलिए वह “हलधर” के नाम से प्रसिद्ध हुए. पिछड़ी जातियों में शुमार अहीर व यादव कृष्ण को अपना पूर्वज मानते हैं. यादव वैदिक क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रांतों पर इनका शासन रहा है.

निषादराज गुह और श्री राम एक साथ गुरुकुल में पढ़े थे
•वनवास के दौरान भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण को अपने नाव में बिठा कर गंगा पार कराने वाले निषादराज गुह और श्री राम एक साथ गुरुकुल में पढ़े थे, एक ही गुरु से.
वनवासी थे महर्षि वाल्मीकि

•भगवान श्री राम के जुड़वा पुत्र लव और कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे. वाल्मीकि समुदाय के लोग, जिन्हें सबसे ज्यादा जातिगत भेदभाव और छुआछूत का सामना करना पड़ा है, भगवान वाल्मीकि को ईश्वर का अवतार मानते हैं तथा इनके वंशज होने का दावा करते हैं.
नाई जाति से थे महापद्मनंद
•प्राचीन भारत की बात करें तो, नंदवंश की स्थापना महापद्मनंद ने की थी, जो नाई जाति से थे. भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब एक ऐसे विशाल साम्राज्य सत्ता किसी गैर कुलीन ने की थी. महापद्म नन्द के बाद इस वंश में उग्रसेन, पंडुकनन्द, पाङुपतिनन्द, भूतपालनन्द, राष्ट्रपालनन्द, गोविषाणकनन्द, दशसिद्धकनन्द, कार्विनाथनन्द, धनानंद आदि राजा हुए. यह सभी क्षत्रिय कहलाए.
चंद्रगुप्त मौर्य की माता एक निम्न जाति से आती थी

•चंद्रगुप्त मौर्य ने धनानन्द (322 ईसा पूर्व) को पराजित करके महान मौर्य राजवंश की स्थापना की. मौर्य वंश की स्थापना में आचार्य चाणक्य की महत्वपूर्ण भूमिका थी जो कि ब्राह्मण थे. कई इतिहासकार मानते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य की माता का नाम मुरा था जो एक निम्न जाति से आती थीं. दूसरी ओर, प्राचीन बौद्ध परंपरा में संकेत मिलता है कि चंद्रगुप्त का संबंध कुलीन वंश से था, जो उन्हें मोरिया के क्षत्रिय वंश के वंशज के रूप में वर्णित करती है.
छत्रपति शिवाजी महाराज कुनबी जाति के थे

•मध्यकाल की बात करें भारत पर मुस्लिमो का आक्रमण होने लगा भारत के अधिकांश हिस्सों पर मुस्लिमों का शासन रहा. बाद में, 1674 ईसवी में छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक के साथ मराठा साम्राज्य का उदय हुआ. छत्रपति शिवाजी महाराज कुनबी (भोसले) जाति के थे. कुनबी एक कृषक जाति है.
होल्कर वंश चरवाहा जाति से थे
•होल्कर वंश भारत में इन्दौर के मराठा शासक रहे हैं. इन्हें मूलरूप से एक चरवाहा जाति या कृषक वंश के रूप में जाना जाता था.
चर्मकार थे संत रैदास या रविदास
•कृष्ण भक्ति रस की महान कवयित्री मीरा बाई थीं. संत रैदास या रविदास उनके गुरु थे, जो चर्मकार थे और जूते बनाने का कार्य करते थे. संत रैदास के गुरु स्वामी रामानंद जी थे जिनका जन्म प्रयागराज में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था.
कुछ अन्य तथ्य
•योगी आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत हैं.
•पटना के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर के पुजारु सूर्यवंशी दास दलित समुदाय से आते हैं.
वैदिक काल में जातिवाद
उपरोक्त उदाहरणों से यह अच्छी तरह से समझा जा सकता है कि-
•वैदिक काल में शिक्षा का अधिकार सभी को प्राप्त था. योग्यता के आधार पर कोई भी किसी पद पर पहुंच सकता था.
• इस समय में भले ही वैवाहिक संबंध जाति का आधार पर किए जाते हैं लेकिन प्राचीन काल में ऐसी स्थिति नहीं थी.
कई तथाकथित बुद्धिजीवियों का विचार है कि जातिवाद का मूल कारण वेद और मनुस्मृति है. परंतु वैदिक काल और प्राचीन भारत में जातिवाद या छुआछूत के अस्तित्व से तो विदेशी लेखक भी स्पष्ट रूप से इनकार करते हैं. इतना ही नहीं, इन हजारों सालों के इतिहास में भारत में कई विदेशी यात्रियों ने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान, ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई. इनमें से किसी ने जातिगत भेदभाव, छुआछूत और जाति के आधार पर शोषण के बारे में नहीं लिखा है. प्राचीन काल में वर्ण होते थे; ब्राह्मण , क्षत्रिय वैश्य और शूद्र; लेकिन उसका उद्देश्य केवल श्रम विभाजन था, और यह 4 तरह की कर्म आधारित श्रेणियां थीं. प्राचीन कालीन वर्ण व्यवस्था जाति का रूप लेकर जन्म आधारित हो गई है. वैदिक ग्रंथों के अनुसार जन्म के अनुसार सभी मनुष्य शूद्र ही पैदा होता है. बाद में मनुष्य कर्म या स्वभाव के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शुद्र वर्ण धारण करता है. यानी कि कर्म, गुण और स्वभाव के आधार पर वर्ण निर्धारण का सिद्धांत था, ना कि जन्म के आधार पर. वर्ण जन्म आधारित नहीं होता था. वैदिक काल में वर्ण परिवर्तन की पूर्ण स्वतंत्रता थी.
अंग्रेजों ने जातिवाद और छुआछूत को बढ़ाया.
ब्राह्मणों को जिस प्रकार से जातिवाद और छुआछूत को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, यह बात भी पूरी तरह से सत्य नहीं है. जानकार मानते हैं कि भारत में कई प्रकार की सामाजिक कुरीतियां मुस्लिम हुकूमत के दौरान हुई जैसे कि पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा और बाल विवाह आदि. अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान, “फूट डालो-राज करो” की नीति के तहत हिंदू समाज में फूट डालने के उद्देश्य से जातिवाद को बढ़ावा दिया गया, ताकि भारतीयों के बीच घृणा द्वेष और भेदभाव फैलाया जा सके जिससे शासन करना आसान हो जाए. अमेरिकी अकादमिक और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के पूर्व चांसलर निकोलस बी डिर्क (Nicholas B. Dirks) दक्षिण एशियाई इतिहास और संस्कृति पर कई पुस्तकों के लेखक हैं, जो मुख्य रूप से ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के प्रभाव से संबंधित हैं. उन्होंने अपनी किताब “कास्ट ऑफ़ माइंड” में उल्लेख किया है कि अंग्रेजों ने भारत पर शासन करने के लिए जातिवाद और छुआछूत को बढ़ाया. भारत के आजादी के बाद, स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए जातिवाद तथा छुआछूत के मुद्दों का राजनीतिकरण किया.
निष्कर्ष:
हिंदू समाज में कई विसंगतियां जरूर हैं. लेकिन हिंदू धर्म मूल रूप से किसी प्रकार के जातिगत भेदभाव और छुआछूत को बढ़ावा नहीं देता है. वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि जातिगत भेदभाव और छुआछूत की अधिकांश बातें राजनीति से प्रेरित हैं. ऐसी कहानियों का मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को अपमानित और विखंडित करना है.
References;
•Dalit-Muslim Rajneetik Gathjod
By Bizay Shashtri Sonkar · 2020
•Castes of Mind: Colonialism and the Making of Modern India, Princeton University Press, 2001, ISBN 0-691-08895-0
•https://www.telegraphindia.com/india/chandragupta-now-a-kushwaha/cid/1577756

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