Ranjeet Bhartiya 13/03/2023
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Last Updated on 13/03/2023 by Sarvan Kumar

बिहार भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक महत्वपूर्ण राज्य है. इसका अतीत अत्यंत स्वर्णिम एवं गौरवशाली रहा है तथा यह विशाल साम्राज्यों, शिक्षा केन्द्रों एवं संस्कृति के गढ़ के रूप में प्रसिद्ध रहा है. बिहार के सामाजिक ताने-बाने में जातियों का विशेष महत्व है. सरकारी दस्तावेजों में दर्ज जातियों की संख्या के अनुसार राज्य में कुल 204 जातियां हैं. ये सभी जातियाँ सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, शैक्षिक स्तर और राजनीतिक प्रभाव के मामले में एक दूसरे से भिन्न हैं. बिहार की उच्च वर्गीय जातियों में 7 जातियां शामिल हैं, जिनमें ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, कायस्थ आदि प्रमुख हैं. उच्च पिछड़ा वर्ग में कुशवाहा, कुर्मी और यादव गिने जाते हैं. इन सभी जातियों के विपरीत, बिहार के कृषि प्रधान समाज में वंचितों का एक बड़ा वर्ग भी शामिल है, जो निम्न पिछड़ी जातियों या दलित जातियों से संबंधित हैं और जीविकोपार्जन के लिए गैर-कृषि गतिविधियों पर निर्भर हैं. इसमें कारीगर पृष्ठभूमि की कई जातियां शामिल है जैसे कि कुम्हार, लोहार, बढ़ई और नाई आदि. आइए जानते हैं बिहार में नाई जाति, सामाजिक, अर्थिक राजनीतिक स्तरों पर कहां है?

बिहार में नाई जाति

नाई जाति की बिहार के सभी जिलों में उपस्थिति है. यह समाज सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक रूप से पिछड़ेपन का शिकार है. इनकी वर्तमान स्थिति बहुत ही दयनीय है और यह समाज अनेक कठिनाइयों से गुजर रहा है. वे जीवनयापन के लिए अपने पारंपरिक कार्य पर अत्यधिक निर्भर हैं. आमतौर पर उनके पास खेती योग्य जमीन नहीं होती है. राज्य में रोजगार के अवसरों की कमी के कारण, उनमें से कई दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर हैं.  केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आरक्षण में नाई जाति को पिछड़ा वर्ग घोषित किया गया है, लेकिन इस समुदाय के लोगों की शिकायत है कि पिछड़े वर्ग के अन्य दबंग और संपन्न लोगों ने उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित कर दिया है. नाई समाज के प्रतिभावान छात्रों को सरकारी खर्चे पर छात्रावासों में रखकर पढ़ाई की व्यवस्था की मांग भी काफी पुरानी है. नाई समाज को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी राज्य स्तर पर केश कला बोर्ड की स्थापना की मांग की जाती रही है.  बिहार की राजनीति में जाति का बहुत बड़ा प्रभाव रहा है. बिहार के क्षेत्रीय दल ज्यादातर जाति आधारित हैं. सभी पार्टियां उम्मीदवार को टिकट देते समय सीट पर जाति के प्रभाव को देखती हैं और आमतौर पर प्रभावशाली जाति के उम्मीदवार को मौका देती हैं. यहां तक ​​कि मतदाताओं की एक बड़ी आबादी जाति आधारित पार्टी या उम्मीदवार को वोट देती है. कभी नाई समुदाय से ताल्लुक रखने वाले स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन उनके बाद नाई समाज राजनीतिक रूप से पिछड़ता चला गया. सामाजिक एकता के अभाव में बिहार में नाई समाज का कोई राजनीतिक नेतृत्व नहीं है. हालांकि सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से नाई समाज के मतदाताओं को एकजुट करने की कवायद जारी है.

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